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संतों का विलक्षण ऐश्वर्य | शिक्षाप्रद हिंदी कहानी : ओम शांति!

Inspirational and Motivational hindi kahani | healthy family lifestyle

एक बार भक्तिमति मीराबाई को किसी ने ताना माराः “मीरा ! तू तो राजरानी है।

महलों में रहने वाली, मिष्ठान्न-पकवान खाने वाली और तेरे गुरु झोंपड़े में रहते हैं। उन्हें तो एक वक्त की रोटी भी ठीक से नहीं मिलती।”

मीरा से यह कैसे सहन होता। मीरा ने पालकी मँगवायी और गुरुदर्शन के लिए चल पड़े।

मायके से कन्यादान में मिला एक हीरा उसने गाँठ में बाँध लिया। रैदास जी की कुटिया जगह-जगह से टूटी हुई थी।

वे एक हाथ में सूई और दूसरे में एक फटी-पुरानी जूती लेकर बैठे थे। पास ही एक कठोती पड़ी थी।
हाथ से काम और मुख में नाम चल रहा था।

ऐसे महापुरुष कभी बाहर से चाहे साधन-सम्पदा विहीन दिखें पर अंदर की परम सम्पदा के धनी होते हैं

और बाहर की धन-सम्पदा उनके चरणों की दासी होती है। यह संतों का विलक्षण ऐश्वर्य है।

मीरा ने गुरुचरणों में वह बहूमूल्य हीरा रखते हुए प्रणाम किया। उसके नेत्रों में श्रद्धा-प्रेम के आँसू उमड़ रहे थे।

वह हाथ जोड़कर निवेदन करने लगीः
“गुरुजी ! लोग मुझे ताने मारते हैं कि मीरा तू तो महलों में रहती है और तेरे गुरु को रहने के लिए अच्छी कुटिया भी नहीं है।

गुरुदेव मुझसे यह सुना नहीं जाता। अपने चरणों में एक दासी की यह तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिये। इस झोंपड़ी और कठौती को छोड़कर तीर्थयात्रा कीजिये और….”

और आगे संत रैदासजी ने मीरा को बोलने का मौका नहीं दिया।

वे बोलेः “गिरधर नागर की सेविका होकर तुम ऐसा कहती हो ! मुझे इसकी जरूरत नहीं है। बेटी ! मेरे लिए इस कठौती का पानी ही गंगाजी है,

यह झोंपड़ी ही मेरी काशी है।”

इतना कहकर रैदासजी ने कठौती में से एक अंजलि जल लेकर उसकी धार की और अनेकों सच्चे मोती जमीन पर बिखर गये।

मीरा चकित-सी देखती रह गयी।
ऐसो है मेरे गिरिधर गोपाल..!!

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