Hindi Kahaniya

स्वर्ग के दर्शन | प्रेरक शैक्षिक हिंदी कहानी ओम शांति!

Inspirational and Motivational hindi kahani | healthy family lifestyle

आज की कहानी, “स्वर्ग के दर्शन”

लक्ष्मीनारायण बहुत भोला लड़का था। वह प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनाने को कहता था। दादी उसे नागलोक, पाताल लोक, चंद्र लोक, सूर्य लोक, आदि की कहानी सुनाया करती थी। एक दिन दादी ने उसे स्वर्ग का वर्णन सुनाया। स्वर्ग का वर्णन इतना सुंदर था! कि उसे सुनकर लक्ष्मीनारायण स्वर्ग देखने के लिए हठ करने लगा।

दादी ने उसे बहुत समझाया कि मनुष्य स्वर्ग नहीं देख सकता, किंतु लक्ष्मीनारायण रोने लगा रोते-रोते ही वह सो गया। उसे स्वप्न में दिखाई पड़ा कि एक चम-चम चमकते देवता उसके पास खड़े होकर कह रहे थे – बच्चे ! स्वर्ग देखने के लिए मूल्य देना पड़ता है। तुम सर्कस देखने जाते हो तो टिकट देते हो ना ? स्वर्ग देखने के लिए भी तुम्हें उसी प्रकार रुपए देने पड़ेंगे।

स्वप्न में ही लक्ष्मीनारायण सोचने लगा कि मैं दादी से रुपए मांग लूंगा। लेकिन देवता ने कहा -” स्वर्ग में तुम्हारे रुपए नहीं चलते। यहां तो भलाई और पुण्य कर्मों का रुपया चलता है। अच्छा! तुम यह डिबिया अपने पास रखो जब तुम कोई अच्छा काम करोगे तो इसमें एक रुपया आ जाएगा और जब कोई बुरा काम करोगे तो एक रुपया इसमें से उड़ जाएगा। जब यह डिबिया भर जाएगी तब तुम स्वर्ग देख सकोगे।”

जब लक्ष्मीनारायण की नींद टूटी तो उसने अपने सिरहाने सचमुच एक डिबिया देखि। डिबिया लेकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उस दिन दादी ने उसे एक पैसा दिया। पैसा लेकर वह घर से निकला। एक रोगी भिखारी उससे पैसा मांगने लगा लक्ष्मीनारायण भिखारी को बिना पैसे दिए भाग जाना चाहता था। इतने में उसने अपने अध्यापक को सामने से आते देखा। उसके अध्यापक उदार लड़कों की बहुत प्रशंसा किया करते थे। उन्हें देखकर लक्ष्मी नारायण ने भिखारी को पैसा दे दिया। अध्यापक ने उसकी पीठ ठोकी और प्रशंसा की, घर लौटकर लक्ष्मी नारायण ने वह डिबिया खोली; किंतु वह खाली पड़ी थी। इस बात से लक्ष्मीनारायण को बहुत दुख हुआ वह रोते रोते सो गया। सपने में उसे वही देवता फिर दिखाई पड़े और बोले – ” तुमने अध्यापक से प्रशंसा पाने के लिए पैसा दिया था। सो प्रशंसा मिल गई। अब रोते क्यों हो। किसी लाभ की आशा से जो अच्छा काम किया जाता है। वह तो व्यापार है। वह पुण्य थोड़ी है।”दूसरे दिन लक्ष्मीनारायण को उसकी दादी ने दो आने पैसे दिए। पैसे लेकर उसने बाजार जा कर दो संतरे खरीदे। उसका साथी मोतीलाल बीमार था। बाजार से लौटते समय वह अपने मित्र को देखने उसके घर चला गया। मोतीलाल को देखने उसके घर वैद्य आए थे। वैद्य जी ने दवा देकर मोतीलाल की माता से कहा इसे आज संतरे का रस देना।

मोतीलाल की माता बहुत गरीब थी। वह रोने लगी और बोली मैं मजदूरी करके पेट भर्ती हूं। इस समय बेटे की बीमारी में कई दिन से काम करने नहीं जा सकी। मेरे पास संतरे खरीदने के लिए एक पैसा भी नहीं है।

लक्ष्मीनारायण ने अपने दोनों संतरे मोतीलाल की मां को दिए। वह लक्ष्मीनारायण को आशीर्वाद देने लगी। घर आकर जब लक्ष्मीनारायण ने अपनी डिबिया खोली तो उसमें दो रुपये चमक रहे थे।

एक दिन लक्ष्मी नारायण खेल में लगा था। उसकी छोटी बहन वहां आई और उसके खिलौनों को उठाने लगी।

लक्ष्मीनारायण ने उसको रोका; जब वह नहीं मानी तो उसने उसे पीट दिया। बेचारी लड़की रोने लगी। इस बार जब उसने डिबिया खोली तो देखा कि उसके पहले के इकट्ठे कई रुपए उड़ जाते हैं। उसे बड़ा पश्चाताप हुआ।

आगे से उसने कोई बुरा काम नहीं करने का पक्का निश्चय कर लिया।

लक्ष्मीनारायण पहले रुपए के लोभ से अच्छा काम करता था।

धीरे-धीरे उसका स्वभाव ही अच्छा काम करने का हो गया; अच्छा काम करते-करते उसकी डिबिया रुपयों से भर गई। वह स्वर्ग देखने की आशा से प्रसन्न होता। उस डिबिया को लेकर वह अपने बगीचे में पहुंचा।लक्ष्मीनारायण ने देखा कि बगीचे में पेड़ के नीचे बैठा हुआ। एक बूढ़ा साधु रो रहा है। वह दौड़ता हुआ साधु के पास गया और बोला – ” बाबा ! आप क्यों रो रहे हैं।”साधू बोला – ” बेटा ! जैसी डिबिया तुम्हारे हाथ में है। वैसी ही एक डिबिया मेरे पास थी। बहुत दिन परिश्रम करके मैंने उसे रुपयों से भरा था। बड़ी आशा थी कि उसके रुपयों से स्वर्ग देखूंगा; किंतु आज गंगा जी में स्नान करते समय वह डिबिया पानी में गिर गई।लक्ष्मीनारायण ने कहा – ” बाबा ! आप रोओ मत, मेरी डिबिया भी भरी हुई है! आप इसे ले लो।”

साधू बोला – ” तुमने इसे बड़े परिश्रम से भरा है! तुम्हें इसे देने से दु:ख होगा।”लक्ष्मीनारायण ने कहा – ” मुझे दुख नहीं होगा बाबा ! मैं तो लड़का हूं। मुझे अभी पता नहीं कितने दिन जीना है। मैं तो ऐसी कई डिबिया रुपए इकट्ठे कर सकता हूं। आप बुड्ढे हो गए हैं। आप अब दूसरी डिबिया पता नहीं भर पाओगे या नहीं! मेरी डिबिया ले लीजिए। ”साधु ने डिबिया लेकर लक्ष्मी नारायण के नेत्रों पर हाथ फेर दिया।लक्ष्मीनारायण के नेत्र बंद हो गए। उसे स्वर्ग दिखाई पड़ने लगा; ऐसा सुंदर स्वर्ग की दादी जी ने स्वर्ग का वर्णन किया था। वह वर्णन तो स्वर्ग के एक कोने का भी ठीक वर्णन नहीं था। जब लक्ष्मी नारायण ने नेत्र खोला तो साधु के बदले स्वपन में दिखाई पड़ने वाला वही देवता उसके सामने प्रत्यक्ष खड़ा था। देवता ने कहा – ” बेटा! जो लोग अच्छे काम करते हैं, स्वर्ग उनका घर बन जाता है। तुम इसी प्रकार जीवन में भलाई करते रहोगे तो अंत में स्वर्ग में पहुंच जाओगे।”देवता इतना कहकर वही अदृश्य हो गये।

मित्रो” मनुष्य जैसे काम करता है। वैसा उसका स्वभाव हो जाता है जो बुरे काम करता है, उसका स्वभाव बुरा हो जाता है।उसे फिर बुरा काम करने में ही आनंद आता है। जो अच्छा काम करता है, उसका स्वभाव अच्छा हो जाता है। उसे बुरा काम करने की बात भी बहुत बुरी लगती है।”

जो प्राप्त है-पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है!
ओम शांति!

familyadmin

familyadmin

About Author

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like

inspirational Hindi story
Hindi Kahaniya

श्री कृष्ण, प्रेरक शैक्षिक हिंदी कहानी ओम शांति!

मुझे बड़ी प्यारी एक कथा है, जिसको मैं निरंतर कहता हूं। कृष्ण भोजन को बैठे हैं। एक कौर मुंह में
Inspirational and Motivational hindi kahani | healthy family lifestyle
Hindi Kahaniya

पिता के हाथ के निशान | प्रेरक शैक्षिक हिंदी कहानी ओम शांति!

पिता के हाथ के निशान, आज की कहानी पिता जी बूढ़े हो गए थे और चलते समय दीवार का सहारा