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मतदान :- कुल मतदान में से पचास प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करने वाले कैंडिडेट को ही विजय घोषित किया जाना चाहिए, तभी समाज तथा राष्ट्र सशक्त होगा।

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Vote मतदान चुनाव

विषय बहुत गंभीर हैं जिसे चर्चा में लेना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना एक इंसान को पेट भरने के लिए रोटी का महत्व होता हैं। इस विषय पर सभी नागरिकों को विमर्श करना चाहिए, जिससे समाज को विभिन्न टुकड़ों में टूटने से बचाया जा सकें। समाज जितना मजबूत होगा, राष्ट्र भी उतना ही सशक्त होगा परंतु जब हम नागरिक ही छोटे छोटे हिस्से में इस लिए बंट जाते है कि हमे वोटों के चक्कर में बांटा जाता है, अब आप तो सभी समझदार है, विवेकी हैं , आप तो सभी देशभक्त होने की हुंकार भरते हो, तो इस बात पर विचार करों कि हम वोटर को क्यों इतने टुकड़ों में बांट दिया जाता है, साथियों, समाज में विघटन की शुरुआत राजनीतिक दलों ने की तथा इसका कारण आप सभी समझते है, कि उनका प्रत्याशी चुनाव में जीत जाएं, उनके प्रत्याशी को जीतने के लिए ज्यादा वोट मिल जाए क्योंकि हमारे सिस्टम में ऐसी व्यवस्था ही नही है जिससे समाज सशक्त हो, भारत के नागरीको के बीच में प्रेम बढ़े, भारतीय लोगों के बीच में एकजुटता बड़े, एकता बढ़े, सद्भावना बढ़ें। जब तक हम सारे गिले शिकवे भुला कर साथ आते है, तब तक तो फिर अगले चुनाव आ जाते है और हम फिर अपनी अपनी राजनीतिक पार्टी को बचाने में लग जाते हैं। क्या कभी आप लोगो ने विचार किया है कि हमारे मनो में इतना जहर क्यों भर गया है, कि हम एक दूसरे का बुरा होने पर खुश होते है, हम एक दूसरे के साथ कोई दुर्घटना होती है तो हम सच के साथ खड़ा होने की बजाय अपनी राजनीतिक पार्टी को बचाने में क्यों लग जाते हैं, हम अपने समाज की बहन बेटियों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं के साथ ना खड़े होकर के, अपनी राजनीतिक पार्टियों के गलत कारनामों के साथ क्यों खड़े होते है? दोस्तो, इसका एक ही कारण है कि हमारे बीच में खोदी गई खाई जिसे राजनीति ने शुरू किया और उसे इस लिए किया गया , क्योंकि भारत में नकारात्मक राजनीति की जाती है, बांटने की राजनीति की जाती है, लोगों को इसलिए बांटा जाता है कि कोई भी दल कम से कम वोट पाकर भी अपना राज कायम कर सकें, जिसका हम वोटर को एहसास भी नही होता , कि हमारे साथ इतना बड़ा सामाजिक बंटवारे का खेल हो रहा है और हम सभी वोटर ऐसे लोगों के लिए लड़ रहे है जो सब मिलकर आनंद ले रहे है। एक दूसरी की शादियों में जा रहे है, एक दूसरे के साथ मिल कर पार्टियां करते है, सभी एक दूसरे की शादियों में बुलाए जाते है, चुनाव में विरोधी दल में होते हुए भी एक दूसरे की मदद करते है, जबकि समाज को इन लोगों की साजिश ने खंड खंड कर दिया गया हैं। कोई किसी के साथ खड़ा होना नही चाहता है, अगर समाज में किसी के बच्चें अच्छा अचीवमेंट पाते हैं ,तो लोगों को खुशी के स्थान पर जलन होने लगती है, समाज में किसी बेटी के साथ कोई दुर्घटना हो जाती है तो लोग इतने बंटे हुए है कि उस बेटी के साथ खड़े होने की बजाय जाति पाती के चक्कर में गलत काम करने वाले के साथ खड़े हो जाते हैं, ये कैसी विडंबना हैं, जिसमे हमारा समाज इतना बीमार हो गया है कि इसका इलाज कौन करेगा, ये भी तय कर पाना मुश्किल हैं। जो लोग अपने ही समाज में हो रहे विघटन को भी स्वीकार रहे हैं, ऐसे नागरिक क्या अपनी राष्ट्र के प्रति भूमिका निभा रहे है ? ये भाई कैसा समाज है जिसमें हम अपने ही लोगों के दुख से दुखी नहीं होते , अपने लोगों की खुशी में खुशी नही मनाते हैं, इससे बड़ा समाज का विखंडन और क्या होगा ? फिर भी हम अपने राजनीतिक पार्टियों की खुशी के लिए ये सब करते जा रहे हैं। हम इस लिए खुश हो जाते है कि हमारा कैंडिडेट जीत गया है लेकिन इसलिए दुखी नहीं होते है कि हमारे समाज को तार तार उन लोगों द्वारा किया जा रहा हैं, जो अपना उल्लू सीधा करने का कार्य करते हैं। हमारा समाज इस लिए लहू लुहान है कि हम खुद ही अपने समाज के कातिल हैं। युवा दोस्तों, मैं आप सभी से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न पूछ रहा हूं जो आपकी आंखे खोल देंगे, कि हम सब को क्यों बांटा जा रहा है ? आप जरूर पढ़े, जैसे ;

  1. साथियों, मान लो एक चुनावी क्षेत्र में कुल एक लाख वोट डाले गए और चार प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे तथा उसमे तीन प्रत्याशियों को चौबीस चौबीस हजार वोट मिलती है, चौथे को मिलते है 28 हजार वोट। और 28 हजार वोट पाने वाला व्यक्ति जीत जाता है। जिस व्यक्ति के विरुद्ध 72 हजार वोट पड़े लेकिन कैसी हाश्यस्पद स्थिति है कि 28 हजार वोट वाले जीत जाते हैं।
  2. आपने देखा है कि राजनीतिक पार्टियों ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए समाज को कई कई हिस्सों में बांट दिया हैं। और ऐसे ऐसे लोग समाज में खड़े कर दिए है जो समाज के मौजीज लोगों को बैठकर पंचायत नही करने देते हैं। हमारी सारी सामाजिक मर्यादाएं तार तार कर दी जा रही है।
  3. कुछ राजनीतिक पार्टियां ने हमारे कुछ युवाओं को समाज को तोड़ने का ठेका दिया हुआ हैं, मैं ऐसे युवाओं से पूछना चाहता हूं कि आप किस के कहने अपने ही बुजुर्गो का अपमान करते हैं ?
  4. आपने देखा हैं , गांव में सच्चाई के लिए न्याय के लिए कोई भी पंचायत होती है , तो उन्हे संपन्न नही होने देते हैं, किसके कहने से ऐसा होता है ?
  5. अरे हमे समझ नही आता है कि हमे क्यों छोटे छोटे भागों में बांटा जा रहा है, केवल इस लिए कि कोई भी नेता कम से कम वोट पाकर भी जीत जाए।
  6. आप सभी युवा एक बात पर गौर करे कि भारतीय राजनीति में चुनाव नकारात्मकता के आधार पर क्यों होता है ? एक दूसरे को गाली देकर क्यों होता है , इसका कारण केवल एक कि हमने कभी भी अपने बच्चों की समृद्धि के बारे , उनके खुशी के बारे सोचा ही नहीं।
  7. भारतीय लोकतंत्र में कोई भी चुनाव पॉजिटिव बातों पर क्यों नही होता है, यहां चुनावी घोषणा पत्रों को छोड़ कर ऊल जलूल बातों पर क्यों प्रत्याशी वोट मांगने का कार्य करते हैं ? क्योंकि हमे उसी में ही आनंद आता हैं।
  8. भारतीय लोकतंत्र में प्रचार व्यक्तिगत या पारिवारिक छिछा लेदर से आगे जाता ही नही हैं, देश को विकसित करने के मुद्दे पर नही होता हैं।
  9. क्या आप मतदाताओं ने कभी सोचा है कि आप अपने मत को ऐसे कैसे कई हिस्सों में बांट देते है और आधे वोट से कम वोट मिलने पर भी प्रत्याशी चुनाव कैसे जीत जाते है, हमे इस बात का एहसास भी नही होता हैं। क्या कभी आप विचार करते हैं, और हम अपने मतों को छोटे छोटे टुकड़ों में बांट कर ऐसे लोगों को जीतने का अवसर देते हैं जो जनप्रतिनिधि बनने के लायक ही नहीं होते हैं।
  10. हम वोटर, अपने राजनेताओं के चक्कर में इतने फंस जाते है कि हमे न तो बेटियों की इज्जत दिखती है, ना हमे भ्रष्टाचार दिखते है, ना समाज का टूटना दिखता है, ना अन्याय दिखता है और ना ही पक्षपात दिखता है, और समाज को टूटने के लिए छोड़ दिया गया। हमे कभी वोट देने से पहले विमर्श नही करते हैं।
    दोस्तों, आओ इस चुनाव में अपनी आत्मा को जगाएं, अपने जमीर को जगाएं और समाज की हत्या करने वाले महानुभावों से प्रश्न पूछना शुरू करें, भारत में मौजूद चुनावी व्यवस्था से पूछना शुरू करें कि आधे से कम मत प्राप्त करने वाला प्रत्याशी कैसे जीत जाता है जब कि उसके विरोध में दो तिहाई मत पड़े हैं। युवा दोस्तो, इस प्रणाली को बदला जाना चाहिए, और अपने समाज में हो रही टूट को रोकने के लिए तथा मतदाताओं में हो रही दुश्मनी को रोकने के लिए सभी मतदाताओं को, अपने आप से ही इस चुनाव में एक प्रश्न पूछना चाहिए कि क्या हम अपने समाज की एकता तथा राष्ट्र की एकता के लिए अपने आप को समझदार नही बना सकते हैं जिससे हम राजनेताओं द्वारा की जा रही चालाकियों को समझ पाएं और उनके खुद के हक में किए जा रहे, फैंसलो को नकारने की हिम्मत जुटाएं तथा भारत को नागरिकों के साथ अखंड बनाने का संकल्प करें। अपने सामाजिक ताने बाने को तोड़ने वाले लोगो के साथ ताकत के साथ खड़े होकर सवाल करना सीखें, जिससे देश विश्व में शक्तिशाली बने। हमारा समाज भी इतना ताकतवर बने , कि कोई भी एरा गेरा आकर हमारी सामाजिक परम्पराओं तथा मर्यादाओं को छिन्न भिन्न ना कर सकें।
    जय हिंद, वंदे मातरम
    लेखक
    नरेंद्र यादव
    नेशनल वाटर अवॉर्डी
    यूथ डेवलपमेंट मेंटर
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