अगर भारत के खेलों को बचाना है तो आई पी एल को देखना बंद करें, भारत के युवा तथा बच्चें।
युवा दोस्तों विषय बहुत गंभीर हैं, हो सकता हैं बहुत से लोगों की समझ में ये ना आए, हो सकता कुछ लोग कहें कि ये क्या बेतुकी बात कर रहा हूं मैं, परंतु इश्यू बहुत ही काम का है क्योंकि शायद युवा पीढ़ी इस बात को जानती ही नही है कि ये आई पी एल खेल नही बल्कि व्यवसाय हैं तथा पैसा इक्कठा करने का कुल मिला कर 250 लोगों का धंधा हैं जिसकी कीमत आम लोगों को ही चुकानी पड़ती हैं और आनंद केवल 250 लोगों तक सीमित है।
इनमें भी 160 के करीब खिलाड़ी, कुछ उद्योगपति, कुछ कंपनियां जो सामान बना कर लोगों को बेचती है, और बी सी सी आई, जो इस व्यवसाय का सबसे बड़ा लाभार्थी हैं। और आप भारतीय जो इस टूर्नामेंट के लिए अपनी रातों की नींद हराम करते है, जो महंगा सामान खरीदते है और जो इस धंधे को समझ नही पाते है, वो आम भारतीय इस व्यवसाय को खेल समझते है , इस सारे व्यवसाय के लिए पैसे जुटाते हैं, जिसमें खेल देखने की टिकट से लेकर, टीम के मालिक जो उद्योगपति है जो अपने सामान की कीमत बढ़ाकर, आम लोगों से वसूलते हैं, कुछ कंपनियां जो स्पॉन्सरशिप लेते हैं, वो दो दो मिनट की एड के 200 से अधिक करोड़ तक रुपए देते हैं, जो चैनल ब्रॉडकास्टिंग के राइट्स लेते हैं वो बी सी सी आई को हजारों करोड़ रुपए देते है तो ये भी आम आदमी से एड के माध्यम से लोगों से वसूलते हैं।
ये आई पी एल , ऐसी हड्डी है जिसे आम युवा चूसता तो है लेकिन अपना ही खून चूसता है और उन्हे ऐसा लगता है जैसे उन युवाओं को आई पी एल या वो खिलाड़ी जिनके लिए वो अपनी जान देते है या जिन्हे वो अपना आदर्श मानते है पैसे के लिए उन युवाओं को पान मसाला, तथा जुए में धकेलते है या फिर अप्रत्यक्ष रूप से पानी के उन ब्रांडो की एड करते है जो कंपनी शराब भी बनाते है, और सिएट टायर जिस दो मिनट के ब्रेक के लिए सैंकड़ों करोड़ देते है, वो क्या बिना कुछ कमाए ही इतने पैसे बी सी सी आई को देते है तो फिर उसी टायर की वास्तविक कीमत में एड की कीमत जोड़ कर ग्राहकों से लिए जाते हैं।
और ये वो ही ग्राहक हैं जो बेचारे टिकट भी खरीदते है, ये सामान की कीमत भी अधिक देते है, जो अपना समय भी देते है, जो अपनी पढ़ाई तथा काम को भी छोड़ते है, खेतो में चल कार्य को छोड़ते है, इससे बच्चो की पढ़ाई पर असर पड़ता हैं और इनके बदले इन सभी को केवल ऐसे मैच देखने को मिलते है जो कभी कभी पहले से भी फिक्स हो सकते हैं, ऐसे खेल जो दूसरे खेलों का गला केवल पैसों के दम पर घोट देते है और इतने पैसों के सामने भारत के हर खेल ध्वस्त हो जाते हैं क्योंकि इतने पैसे किसी खेल के पास नही हैं फिर भी हमारे कुछ मेहनती बच्चे जो अपने घर के सभी संसाधनों का उपयोग करके अपनी कुश्ती, अपनी कब्बड़ी , अपने फुटबाल, अपनी एथलेटिक्स , अपनी बैडमिंटन, हॉकी तथा अन्य खेलों को जीवित रखते हैं, इनको सहयोग करना अति आवश्यक है। जब पूरी आई पी एल गेम्स का धंधा समझते है तो हमे लगता हैं कि ये अमीर आयोजकों का गरीब जनता को लूटने का व्यवसाय हैं, इसमें आदि से लेकर अंत तक सारा पैसा कलेक्ट करने का व्यवसाय आम इंसान पर टिकता है
जिसमे आम इंसान ना चाहते हुए भी हर खर्चे को भुगतता हैं, यहां मैं कुछ गतिविधियां बताना चाहता हूं जो आई पी एल के माध्यम से आम भारतीय को भुगतना पड़ता है चाहे वो इसे देखें या ना देखें , इसमें इंटरेस्ट लो या न लो , सभी भारतीय जो आम है उनके पैसों से अमीर लोग आनंद तथा एशो आराम मनाते है। जो इन ऐशो आराम में शामिल होते है , उसमे निम्न लोग शामिल हैं, जैसे ;
- बी सी सी आई
- बड़े बड़े उद्योगपति
- फिल्म एक्टर्स
- क्रिकेटर्स
- मीडिया चैनल
- क्रिकेट के पुराने खिलाड़ी
- कंपनियां
- अंपायर्स
ये कुछ लोग है जो हजारों करोड़ रुपए का लुत्फ उठाते हैं, और आम तथा मध्यम तथा गरीब लोगों के पैसे इसमें शामिल होते है, वो कैसे , आप सभी निम्न तरह से समझने का प्रयास करें। - टिकट्स खरीदने पर
- छोटे से छोटे समान खरीद पर
- जितनी भी कंपनियां है, उनका सामान खरीदने पर।
- पान मसाला की खरीद करने पर।
- टायर खरीदने पर।
- जियो से मोबाइल रिचार्ज कराने पर।
- जितने भी लिकर ब्रांड पानी है जैसे किंगफिशर आदि का पानी खरीदने पर।
- टी वी देखने पर।
- जितनी भी कंपनियां एड करती है उनका सामान खरीदने पर।
- एयरवेज़ की टिकट खरीदने पर।
- जिस कंपनी ने आई पी एल का टाइटल खरीदा है, उसके उत्पाद खरीदने पर।
युवा दोस्तों , अगर हमने अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी को बचाना है तो हमे ये आई पी एल जैसे व्यवसायिक खेल देखने बंद करने पड़ेंगे जिससे ऐसे धंधे बंद हो सके जिससे कुल मिला कर दो सौ लोगो को फायदा होगा और लूटा जायेगा, भारत की गरीब जनता को। मैं यहां भारतीय युवाओं को एक बात समझाना चाहता हूं कि ये केवल अमीरों के हर प्रकार के मनोरंजन का धंधा है जिसमे गरीब लोगों को कंज्यूमर बनाया जाता हैं, और कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता है कि जिस व्यवसाय में लाखो करोड़ रुपए का धंधा होता है उससे आम लोगो तथा भारतीय आधारभूत खेलों को क्या फायदा हैं। मैं यहां बी सी सी आई से कुछ प्रश्न करना चाहता हूं और साथ ही साथ उन कंपनियों तथा खिलाड़ियों से भी पूछना चाहता हूं कि इस व्यवसायिक गतिविधि से आम भारतीयों को क्या लाभ हैं।- क्या बी सी सी आई ने अपनी बड़ी बचत से किसी दूसरे खेल को सहयोग किया हैं ?
- क्या बी सी सी आई द्वारा क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में कोई क्रिकेट ट्रेनिंग अकादमी बनाई है जिसमे गरीब बच्चों को फ्री ऑफ कॉस्ट ट्रेनिंग दी जाती हो ?
- क्या भारत के उन बच्चों के लिए जो गरीब है या झुगी झोपड़ी में रहते है या कोई बहुत ही बेहतरीन खिलाड़ी है और किसी गरीब परिवार का बच्चा, उनके लिए कोई राष्ट्रीय स्तर पर रेसिडेंशियल ट्रेनिंग सेंटर बनाया हैं ?
- क्या बी सी सी आई भी अपनी कुल आमदनी से सी एस आर के लिए 2 प्रतिशत पैसा सोशल डेवलपमेंट के लिए निकालते हैं?
- क्या अन्य आई पी एल की टीमों को स्पॉन्सर करने वाले अन्य उद्योगपति या बड़े लोग अथवा फिल्म एक्टर्स या अन्य द्वारा नए बच्चों के लिए अलग अलग स्तर पर अपनी अपनी खेल अकादमी बनाई हैं ?
- क्या ब्रॉडकास्टर द्वारा कभी दूरदराज में खेल रहे ग्रामीण बच्चों को दिखाया या उनकी अचीवमेंट को दिखाया गया हैं। या फिर कभी अन्य खेल के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया हैं ?
- क्या बी सी सी आई ने हर प्रदेश में अपने खर्चे पर भारत में क्रिकेट टेलेंट हंट कार्यक्रम चलाया हैं ? जिससे रिमोट से कोई अच्छा खिलाड़ी देश के लिए खेल सके।
- क्या बी सी सी आई, भारतीय खेलों के उच्च स्तर पर पहुंचाने के लिए कोई शोध संस्थान खोला हैं?
- क्या बी सी सी आई ने भारतीय खेलों को बढ़ावा देने के लिए, भारत में खेल स्कूल खोलने का कोई कार्य किया हैं ?
- क्या बी सी सी आई, भारतीय आम जन मानस के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कोई अभियान चला रही है ?
मैं अंत में भारत के सभी युवाओं को सचेत करना चाहता हूं कि भारत के उन खेलो को बढ़ावा देने के लिए, दूसरे खेलों को भी प्रोत्साहित करें। ऐसे सभी खेलों के लिए अपना योगदान करे जिससे ओलंपिक , एशियन तथा कॉमनवेल्थ गेम में भारत के गोल्ड मेडल की संख्या बढ़ सकें। केवल एक खेल क्रिकेट को ही सारा समय तथा पैसा इसी खेल को ना दें। और मैं यहां एक बात और कहना चाहता हूं कि जो गेम दो दो महीने चलते है उसका सीधा अर्थ पैसा कमाना है क्योंकि जितने दिन खेल चलेंगे, लोग उतने ही टिकट खरीदेंगे, उतनी ही टी शर्ट खरीदेंगे, उतनी ही ज्यादा एड से पैसे मिलेंगे, उतना ही ब्रॉडकास्टर जियो ज्यादा पैसा कमाएंगे, उतने ही ज्यादा पान मसालों की एड होगी, - उतनी है किंगफिशर की एड होगी, और ज्यादा से ज्यादा पैसा इक्कठा किया जायेगा। मैं यही कहना चाहता हूं कि ओलंपिक जैसे गेम जिसमे हजारों खिलाड़ी भाग लेते है, तथा क्रिकेट को छोड़ कर सभी खेल उसमे शामिल होते है और केवल 15 दिनों में सफलता के साथ संपन्न हो जाते हैं , तो फिर आई पी एल , केवल 10 टीमों में बीच में खेला जाता है तो भी ये दो महीने क्यों चलाएं जाते हैं , इसका सीधा सा अर्थ है कि ज्यादा पैसा इक्कठा किया जाए। इसीलिए मैं कहता हूं कि सभी युवा द्वारा ऐसे खेलों को नजर अंदाज किया जाना चाहिए जिससे हमारे भारत के राष्ट्रीय खेल तथा अन्य खेलों को हानि पहुंचा रहे है। तथा भारत की युवा पीढ़ी आलसी बनती जा रही हैं।
जय हिंद, वंदे मातरम
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर