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अब समय आ गया है कि हम पार्टियों को नही अच्छे प्रत्याशी को वोट देने की परंपरा बनाएं

Choose an honest person no party

जिससे अच्छे, सच्चे प्रतिनिधि चुने जाए, और पार्टी के नाम आए नकारा लोगों को छोड़ें।

समय के साथ चलने का नाम समझदारी हैं, जो लोग परिवर्तन को नही स्वीकारते है वो दुनियां से बहुत पीछे पिछड़ जाते हैं। भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया भी इसी दौर में पहुंच गई हैं कि उस की परिपक्वता के लिए हमे अपने जनप्रतिनिधियों का चयन भी स्वतंत्र रूप से चुनने की जरूरत हैं, आप मुझे कह सकते हैं कि ऐसे तो सरकार चलेगी ही नही। शायद आप सभी भूल रहे हैं कि राजनीतिक दलों के नाम पर ऐसे ऐसे लोग चुनाव जीत कर आ रहे हैं, जिन्हे ना तो अपने क्षेत्र की फिक्र होती है , ना ही वो लोग अपने क्षेत्र की समस्याओं को संसद में उठाने की भी हिम्मत कर पाते हैं। आप सभी जानते है कि हमारी लोकतांत्रिक परंपरा इसलिए ही विकसित हुई है कि भारत के दूर दराज के क्षेत्र हो या कहीं नजदीक का क्षेत्र हो, या आदिवासी क्षेत्र हो, या खेती किसानी का क्षेत्र या फिर मजदूरों की भरमार का क्षेत्र हो या कोई ऐसा क्षेत्र जहां गरीब , और कामगार रहते है अथवा कही औद्योगिक जरूरत का क्षेत्र हो, उस क्षेत्र से जो भी जनप्रतिनिधि चुन कर आएं वो पढ़ा लिखा हो, वो माननीय ईमानदार हो, वो सदाचारी हो और अपने क्षेत्र की कोई भी समस्या को उठाने में काबिल हो। जब से भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियां मजबूत होनी शुरू हुई हैं, तब से ही हमारे जनप्रतिनिधि कमजोर होने शुरू हो गए हैं। क्या भारतीय लोकतंत्र की स्थापना इसी के लिए की गई थी कि भारत में चुने हुए जनप्रतिनिधि संसद में मूक बन कर बैठे रहे, अपने क्षेत्र की जनता की कठिनाइयों तथा समस्याओं को उठाने के लिए किसी भी जनप्रतिनिधि का ना तो कोई इंटरेस्ट हो और ना कोई दिल में दर्द हो अथवा ना ही जनप्रतिनिधि संसद में बोलने के लिए तैयार ही दिखाई देते हैं। क्या भारतीय संसद इसलिए बनाई गई थी कि वहां किसी समस्या पर चर्चा ही ना की जाए , क्या हम अपने जनप्रतिनिधि इस लिए चुनते है कि हमारे जनप्रतिनिधि संसद में ही ना जाए तथा बहुत से माननीय सांसद तो संसद की कार्यवाही में ही भाग लेने की तत्परता दिखाते हैं। इसका मतलब तो केवल एक ही है कि अब माननीय सांसद केवल किसी भी बिल को पास करने में हाथ उठाने या हाजिरी लगाने के लिए रह गए हैं। ये केवल तब से हुआ है जब से राजनीतिक पार्टियां बहुत मजबूत हो गई हैं। संसदीय परंपरा में सबसे मजबूत संसद होनी चाहिए , कोई राजनीतिक पार्टी नही होनी चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो कोई भी जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र की बात नही उठा पाएंगे। और सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्हे जिस मुख्य कार्य के लिए चुना जाता है यानी किसी महत्वपूर्ण विषय पर बहस करने का भी सभी सांसदों को अवसर भी नही मिलता हैं। युवा दोस्तों, जनप्रतिनिधि किसी भी स्तर के हो, चाहे वो विधान सभा के लिए हो, चाहे वो संसद के लिए हो, चाहे वो लोकल निकाय या फिर पंचायत के लिए हो, सभी का कर्तव्य एवम् अधिकार होता है कि वो अपने क्षेत्र की जनता की समस्याएं सुने, उनका निवारण कराएं तथा अपनी निर्धारित सभा में अपने क्षेत्र के प्रश्न उठाए, ताकि देश में हर क्षेत्र के लिए कल्याण कारी योजनाएं बन सके तथा लागू हो सकें। जब से राजनीतिक पार्टियों का दबदबा बढ़ा है तब से हमारे माननीय जनप्रतिनिधियों के जो अधिकार अथवा कर्तव्य तय किए हुए हैं , उनका हमारे माननीय जनप्रतिनिधि निर्वाह ही नहीं कर पाते हैं, वो तो बेचारे अपनी पार्टी के चक्रव्यूह में ही फंस कर रह जाते है, कुछ जनप्रतिधियों को तो अपने मन की बात कहने की भी छूट नही होती है। अगर वो पार्टी लाइन से अलग बोल भी जाएं या पार्टी लाइन के विरुद्ध किसी बिल पर अपना मत देना भी चाहे तो नही दे सकते हैं, उन पर व्हिप जारी कर दी जाती हैं। इन सब को देखते हुए अच्छे कैंडिडेट को चुनने के लिए अपना निर्णय बनाए और ऐसे प्रत्याशी को चुने, जो आपके बीच रहते हो। अधिकतर प्रत्याशी तो हमारे सिर ऐसे मंढ दिया जाते है जो ना तो हमारे बीच रहते है तथा ना ही वोटर की पसंद होते है, फिर भी हमे उन कैंडिडेट को वोट देना पड़ता, जो बाद में हमारे दुख तकलीफ में भी काम नही आते है। ऐसे प्रत्याशी जीतने के बाद कई बार तो दूसरी पार्टियों की गोद में बैठ जाते है जिनके खिलाफ हमने मतदान किया होता है और हमारी इज्जत को तार तार करने का कार्य भी किया जाता है। मेरा कहना यही हैं, कि हम सब को ऐसा व्यक्ति चुनना चाहिए जो ईमानदार हो, हमारे बीच रहने वाला तथा संसद में किसी भी परस्थिति में हमारी समस्याओं के साथ खड़ा हो सकें। मैं चाहता हूं कि हर ऐसे व्यक्ति को भारतीय संसद या विधान सभा में भेजा जाए जो सज्जन हो, जो ईमानदार हो, जो चरित्रवान हो, जो अपराधिक गतिविधियों में शामिल ना हो, जो बहन बेटियों की इज्जत करने वाला हो और सबसे बड़ी बात ये कि वो अपने क्षेत्र के लोगों के साथ खड़ा होना जनता हो। इसलिए हमे अच्छे और सच्चे प्रत्याशियों को चुनने के लिए अपना पुराना ढर्रा जिसमे केवल पार्टी देख कर वोट देने की मानसिकता थी, उसे बदलना चाहिए, अगर हम ऐसा करेंगे तो पांच बदलाव निश्चित होंगे, जैसे ;

  1. ऐसे व्यक्ति को किसी पार्टी लाइन का खतरा नहीं होगा , वो जनप्रतिनिधि के रूप में कार्य कर पाएंगे।
  2. ऐसे जनप्रतिनिधि अपने जनप्रतिनिधि होने के कर्तव्य की पूर्ति कर पाएंगे, उन्हे पार्टी प्रतिनिधि बनने से छुटकारा मिलेगा।
  3. ऐसे जनप्रतिनिधि गलत को गलत और सही को सही कहने के लिए खड़े हो पाएंगे।
  4. इस तरह से चुने हुए माननीय जनप्रतिनिधियों को संसद या विधान सभा में अपनी अंतर आत्मा से बोलने की स्वतंत्रता मिलेगी, जो पार्टी की पाबंदी की वजह से नही मिलती है।
  5. अच्छे , सच्चे जनप्रतिनिधियों को चुनने पर हम सभी जनप्रतिनिधियों के अधिकारों की रक्षा भी कर पाएंगे क्योंकि एक जनप्रतिनिधि इसी लिए चुना जाता है कि वो अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याएं तथा जरुरते लोकसभा या विधानसभा में चर्चा के लिए रखे।
    हम सभी पार्टी प्रतिनिधि चुनने की बजाय अपना सच्चा जनप्रतिनिधि चुने। युवा दोस्तों जब से पार्टियों का सिस्टम ताकतवर हुआ है , तभी से हमारे माननीय जनप्रतिनिधियों ने अपने क्षेत्र की जनता के प्रति दिए गए अधिकारों को खो दिया है तथा इसी कारण वो महानुभावों अपने कर्तव्य को भी जिम्मेदारी के साथ निर्वाहन करने में असफल हो रहे है। आओ सभी मिलकर विचार करें, और अपने क्षेत्र से बहुत ही अच्छे और सच्चे प्रत्याशी को चुनने का संकल्प लें, जिससे पार्टी के नाम से नही अपने खुद के नाम तथा गुणों के आधार पर कोई भी कैंडिडेट जीत दर्ज कर सकें। आओ हम सब अपने अपने क्षेत्र से ही इस पुनीत ,राष्ट्र के लिए हितकर कार्य की शुरुआत करें।
  6. जय हिंद,वंदे मातरम
    लेखक
    नरेंद्र यादव
    नेशनल वाटर अवॉर्डी
    यूथ डेवलपमेंट मेंटर
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