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भारत में शिक्षा पद्धति में कला संकाय जिसको हम आर्ट्स भी कहते है, उसको सही अर्थ तथा दिशा देने की जरूरत है, जिससे रोजगार के रास्ते खुले।

मैं एक ऐसे विषय को चर्चा में लेकर आ रहा हूं जो बुद्धिजीवियों तथा नीति निर्धारकों के लिए विचारणीय विषय है, जिसको भारत की सतत्तर वर्ष की आजादी होने के बाद भी किसी ने गौर नही किया है। आप सभी ने देखा भी होगा और पढ़ा भी होगा और जो शिक्षा ग्रहण कर चुके है, उन्होंने खुद भी पढ़ा होगा।

हमारे यहां ट्रेडिशनल कॉलेजेस में या विश्वविद्यालयों में तीन ही संकायों में शिक्षा दी जाती है, एक तो विज्ञान संकाय, वाणिज्य संकाय तथा कला संकाय। इसमें विज्ञान संकाय तो समझ में आता है कि उसमे विज्ञान की पढ़ाई होती है, दूसरा वाणिज्य, जिसमे कॉमर्स से संबंधित शिक्षा दी जाती है, लेकिन एक संकाय कला है, जिसमे कला से संबंधित शिक्षा नही दी जाती है और उसे इंग्लिश में आर्ट्स कहते है तो उसमे आर्ट्स की शिक्षा नही दी जाती है। इस संकाय को कला संकाय का नाम क्यों दिया है , इसको जानना चाहिए । कुछ लोग इसे आजकल ह्यूमैनिटी कहने लगे है।

ह्यूमैनिटी मतलब मानविकी जिसमे मानव उत्थान से संबंधित शिक्षा दी जानी चाहिए। चलिए हम अभी इस विषय को तो ले ही नही रहे है जो मानविकी से जुड़ा हैं, हम तो अभी कला संकाय के विषय ले रहे जो केवल मानव की जानकारी बढ़ाने का काम करते है परंतु कला से रिलेटेड तो नही है। इसमें कला का एक विषय तो है जिसे हम फाइन आर्ट्स कहते है बाकी इतिहास, इतिहास में भी प्राचीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास, आधुनिक इतिहास, भुगौल, पॉलिटिकल साइंस, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, समाज शास्त्र, साइकोलॉजी, फिजिकल साइंस, इसमें कला से संबंधित कौन से विषय है, इसमें या तो कला का अर्थ नही समझते है या फिर हम समझते हुए भी इस सिस्टम अथवा व्यवस्था में परिवर्तन नहीं करना चाहते हैं।

भारत के प्रिय नागरिकों, मैं आपको कला अथवा आर्ट्स का असली मतलब बताने का प्रयास कर रहा हूं, हो सकता है , इससे हमारी समझ बढ़े और ये कलाएं मानव उत्थान तथा व्यवसाय के रास्ते खोलने का कार्य करे। आजतक तो हमारी कलाओं को इस शिक्षा के नाम पर मारने का कार्य ही किया है, हमने कब हमारी भारतीय कलाओं जो विश्व स्तरीय थी और है, उन्हे जिंदा रखने का काम किया है। दोस्तों, कला का अर्थ होता है जीवन से जुड़ा हुआ वो ज्ञान जो व्यवहारिक है, इस व्यवहारिक ज्ञान को ही तो हम कला कहते है, ये केवल कागजी नही होती है , ये व्यवहारिक ज्ञान को जीवन की हर क्रियाओं में ढालना हैं।कला जो हमारी आजीविका बनाने का रास्ता बनाए, तथा मानव जीवन को कलात्मक दृष्टिकोण देने का काम करें।

अकेले कागजी ज्ञान से या फिर कुछ जानकारियां इक्कठी करने से , जो केवल कुछ तारीखों की जानकारी हो, या फिर कुछ घटनाओं की जानकारी हो, उन्हे इक्कठे करने से क्या लाभ हैं। इससे ना तो हम इस पृथ्वी को सुंदर बनाने लायक बनेंगे या अपनी कला के माध्यम से कोई रोजगार अथवा आजीविका के तौर तरीके बना पाते है और ना ही हम मानव उत्थान के लिए इन विषयों से ज्यादा सा लाभ ले पाते हैं। हमने कुछ ऐसे विषय जो इनफॉर्मेटिव या उन्हे सूचना ज्ञान तो कह सकते हैं परंतु कला के विषयों को दुबारा से सीमांकित करने की जरूरत हैं। कला के अलग अलग विषय जो जीवन को सुंदर तथा आजीविका से जोड़ने के लिए सीमांकित करना चाहिए।

मैं , आप सभी को भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा ऋषि संजीवनी आश्रम में अपनी शिक्षा दीक्षा पूर्ण करते हुए चौंसठ कलाओं का ज्ञान तो होगा ही, जिन्हे प्राप्त करते हुए निपुण हुए और भारतीय कलाओं को लोगों तक पहुंचाना तय किया। अगर आप मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित ऋषि सांदीपनी आश्रम में जाकर देखेंगे तो जरूर जान पाएंगे । आओ मैं अब उन सभी चौंसठ कलाओं का संक्षिप्त वर्णन करता हूं जो निश्चित तौर पर हमारे युवाओं को इस कला संकाय का अर्थ बताने का कार्य करेगी। इसमें जीवन जीने के कुल चौसठ तरीके तथा ज्ञान, वा विधाएं है जो हमे जीवन में विभिन्न कार्यों के रास्ते खोलने का काम करेंगे, जैसे ; संगीत तथा वाद्ययंत्र , नृत्य, गीत,आलेख्य, विशेषकच्छेद, तंडुल कुसुमवालीविकार , पुष्पस्तरण, दश नक्षणंगराग, मनुईभूमिका कर्म, शयन रचना, उदकवाद, उड़काघात , चित्रक्षयोग, माल्यग्रथन, नेपथ्य प्रयोग, हस्तलाघव, शिखरकापीड योजन, सूत्र क्रीड़ा, पुस्तक वाचन, दुर्वाचक योग, प्रहेलिका, तक्ष कर्म, तक्षण, रूपरत्न परीक्षा, वास्तुविद्या, वृक्षायुर्वेद योग, निमितज्ञान, म्लेच्छित विकल्प, अक्षर मुष्टिका कथन, धरणमृतिका, क्रिया कल्प, व्यायामिकी, वैजयिकी विद्या, वैनायिकी विद्या, बाल क्रिडनक , अभिधानकोष, मानसी, संपाठ्य, छानदोज्ञान, वास्तुगोपन, छलीतयोग, ध्युतविशेष , यंत्र मृतिका, आदि ये सब कलाएं है जिन्हे कला संकाय में शामिल करना चाहिए था , ये तो वो कलाएं है जो श्री कृष्ण जी ने सांदीपनी आश्रम में सीखी थी।

आज वर्तमान में तो इसके अलावा भी तो संकड़ों कलाएं हैं, जिन्हे व्यहारिक रूप से सीखने तथा सिखाने की जरूरत हैं, पता नही क्यों कला संकाय को कागजी ज्ञान वाले विषयों तक सीमित कर दिया गया है, जिससे केवल कुछ जानकारियां मिलती है जो हमारे जीवन में कहीं काम नही आते है। और जो कला का असली अर्थ है उससे बहुत दूर रख दिया गया है, इसीलिए तो आज हम तथा हमारे बच्चे अपनी पुरानी कलाओं को भी भूल गए तथा कला संकाय के नाम पर कोई दूसरे विषय ही पढ़ रहे है। मानविकी के नाम पर कुछ और ही पढ़ रहे है जिसका हमारे व्यक्तित्व पर कोई फर्क नहीं पड़ता हैं।

दोस्तो , हमे इस कला संकाय को समझने की जरूरत है, इसका अर्थ समझने की आवश्यकता है, इसको सही दिशा देने की जरूरत है, ये केवल और केवल व्यवहारिक ज्ञान है जो हमारे जीवन में हमारी आजीविका तथा व्यक्तित्व से सीधा जुड़ा हुआ है, जिसका व्यवहारिक ज्ञान अगर तीन चार वर्ष ले लिया जाए तो उस विषय के हम अव्वल दर्जे के आर्टिस्ट बन सकते है। दोस्तो आर्ट केवल पेटिंग नही है, वो सभी कला भी तो आर्ट ही है जो हमे व्यवहारिक ज्ञान तथा हमे अपने व्यवसाय स्थापित करने में सहायक है , वो हमारा बिजनेस बनेगा, वो हमारी रोजीरोटी बनेगी। मैं यहां सभी नीति निर्धारकों से कहना चाहता हूं कि अपनी शिक्षा पद्धति में इस कला संकाय का अर्थ समझे और इसमें वो सभी विषय शामिल करें जो भगवान श्री कृष्ण जी ने सीखे तथा सैंकड़ों विषय अभी लाइन में है, जैसे, फोटोग्राफी, टेलरिंग, मूर्तिकार, भवन निर्माण, प्लमिंग, इलेक्ट्रीशियन, ड्राइविंग, गृह सज्जा, हॉस्पिटिलिटी, कम्यूप्टर , आर्टिफिशियल इंटलिजेंट,


मैं अंत में यही कहना चाहता हूं कि भारत में कला संकाय के नाम पर हो रही पढ़ाई को बदला जाए तथा कला के असली विषय लेकर आए ताकि उनका व्यवहारिक ज्ञान हो सके और उन्हे युवा अपनी रोजी के रूप में अपना सके, अपना व्यवसाय बना सकें।


जय हिंद, वंदे मातरम
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर

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