आज की कहानी , बात उन दिनों की फर्ज
“जाओ तो ये लिस्ट लेते जाना किराने के सामान की”- सुधा ने नवीन को एक लिस्ट हाथ में थमाते हुए कहा
“पापा मेरी चाँकलेट” -बेटा भी लाड में बोला
“पापा मेरे लिए अंकल चिप्स” – छोटी से आराध्या भी अपनी पेंट हिलाते हुए इठलाकर बोली
“हां बेटा ले आऊंगा” नवीन ने पुचकारते हुए जवाब दिया
मगर नवीन के दिमाग में तो सुबह फोन पर बाँस से हुई बातचीत में कहे शब्द गूंज रहे थे
“नवीन बाबू , इस बार भी आधी सैलरी ही मिलेगी”
“बैठे बिठाए जो मिले चुपचाप ले लो”
“सुधा…!! नवीन को दवा की पर्ची दे दी”!! मां की आवाज सुनकर नवीन का ध्यान अचानक टूटा!
“जी मां जी! पहले ही दे दी”।
उफ्फ !! ये बीमारी कोरोना, कमर तोड दी हम प्राइवेट कम्पनी वर्कर की, उसपर ये लाकडाउन, हरबार बढ जाता है, अब आधी सैलरी मे कैसे मां की दवाई, किरानेवाले का महीने के राशन के पैसे, मकान का किराया, दूधवाले का पैसा,
क्या दूं क्या रखूं- नवीन मन ही मन बुदबुदाने लगा।
“उसपर चार महीने पहले नयी स्कूटी ली थी,सोचा था सुधा और बच्चों को स्कूल छोडने को काम आएगी, अब इएमआई” सोच सोच कर ही मन चिंता में डूब रहा था।
ऐसी अनेकों परेशानियों को सोचते हुए नवीन राशन लेने बाहर निकल पडा।
अभी कुछ ही दूरी पर पहुंचा था की स्कूटी की पीछे से । टीं~टीं~……..
की आवाज सुनाई दी ।
मुड़कर देखा तो सुधा थी स्कूटी पर ।
स्कूटी रोककर नवीन को मास्क देते हुए बोली-
“ये लीजिए,बस चल देते हैं मुंह उठाकर, यूं ही, lockdown है जनाब”।
और ये भी लीजिए-पर्स से पैसे निकाल कर देते हुए बोली।
“ये इतने पैसे,तुम्हारे पास ,कैसे, हमारे पास तो हर महीने कुछ नही बचता तो”-हैरान से नवीन सुधा की ओर देख कर बोला।
सुधा मुसकुराते हुए बोली – “आपके आँफिस जाने के बाद बच्चों को टयूशन पढाकर उन्हीं से बचाए हुए हैं, कुछ और बच्चों को टयूशन देने लगी थी। आपको नही बताया था सोचा था कभी एमरजेंसी मे काम आएंगे” ।
“सबके सामने नही देना चाहती थी इसलिए पीछे पीछे चली आई” चेहरे पर हल्की मुस्कान लाकर सुधा ने जवाब दिया।
“तुम बिल्कुल मां की तरह मेरी हर परेशानियों को चेहरे पर से पढ लेती हो” चैन की सांस लेते हुए नवीन के मुंह से निकला।
“हां !! मां ही तो हूं मगर तुम्हारी नहीं, तुम्हारे बच्चों की” सुधा मुस्कुराई!
“बस एक पत्नी का फर्ज निभा रही हूं जैसे तुम हर मोड पर हर वक्त मेरे साथ मेरे हमकदम बनकर साथ रहते हो, आखिर हम जीवनसाथी जो है सुख दुख के”- मुसकुराकर वो स्कूटी लिए चली गई
वहीं भीगी हुई पलकों से नवीन भी हंसते हुए उसे देख रहा था।
सीख
महिलाओं को परिवार की कई बड़ी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं। उन्हें बचत से लेकर भोजन, स्वास्थ्य, रिश्तेदार, बच्चों की पढ़ाई सब कुछ देखना पड़ता है। ऐसे में उन्हें शुरू से ही बचत की आदत डालनी चाहिए, छात्राओं में बचत की लगन सबसे अधिक होती है। वे स्कूल टाइम से ही बचत करने लगतीं हैं। गृहणी बनने पर घर संभालतीं हैं, तो भी बचत करके रखती हैं,यही बचत बुरे समय मे काम आती है, धन्य है हमारी मातृ शक्ति तथा पूजनीय है उनका समाज तथा परिवार में योगदान।
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।।