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भोग लगा करके ही भोजन करे

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भोग लगा करके ही भोजन करे

               एक सेठजी जोकि बड़े कंजूस थे एक दिन दुकान पर् बेटे को बैठा दिया और बोले:-

बिना पैसा लिए किसी को कुछ मत देना,मुझे कुछ जरूरी काम है मैं बस यूं गया और यूं आया..

अकस्मात सेठजी के जाने के पश्चात दुकान पर एक संत आए जो अलग अलग जगह से एक समय की भोजन सामग्री लेते थे, लड़के से कहा:- बेटा जरा नमक दे दो…

लड़के ने संत को डिब्बा खोल कर एक चम्मच नमक दे दिया…..
सेठ जी आए तो देखा कि एक डिब्बा खुला पड़ा था…….

सेठजी ने कहा:-
क्या बेचा, बेटा बोला वो जो तालाब के पास संत रहते हैं उनको एक चम्मच नमक दिया था……

डिब्बा देखकर सेठ का माथा ठनका और बोले:- अरे मूर्ख इसमें तो जहरीला पदार्थ है…

अब सेठजी भाग कर संतजी के पास गए….

संतजी भगवान के भोग लगाकर थाली लिए भोजन करने बैठे ही थे कि सेठजी दूर से ही बोले:-
महाराज जी रुकिए आप जो नमक लाए थे वो जहरीला पदार्थ था,आप भोजन नहीं करें…

संतजी बोले:- भाई हम तो प्रसाद लेंगे ही क्योंकि भोग लगा दिया है और भोग लगा भोजन छोड़ नहीं सकते …..
हां, अगर भोग नहीं लगता तो भोजन नहीं करते और भोजन शुरू कर दिया…

सेठजी के होश उड़ गए, बैठ गए वहीं पर…

रात पड़ गई तो सेठजी वहीं सो गए कि कहीं संतजी की तबियत बिगड़ गई तो कम से कम बैद्यजी को दिखा देंगे, इससे संत की जान भी बचेगी और वो बदनामी से बच जाएंगे …
यही सोचते सोचते नींद आ गई….

सुबह सेठ जी ने देखा कि संतजी सुबह जल्दी ही उठ गए और नदी में स्नान करके स्वस्थ दशा में आ रहे हैं…

सेठजी ने पूछा:-
महाराज तबियत तो ठीक है…संत बोले:- सब भगवान की कृपा है, कह कर मन्दिर खोला तो देखते हैं कि भगवान का श्री विग्रह के दो भाग हो गए और शरीर कला पड़ गया…….

अब तो सेठजी सारा मामला समझ गए कि अटल विश्वास से भगवान ने भोजन का जहर भोग के रूप में स्वयं ने ग्रहण कर लिया और भक्त को प्रसाद का ग्रहण कराया …
सेठजी ने आज घर आकर बेटे को घर दुकान संभलवा दी और स्वयं भक्ति करने संत की शरण चले गए…..

शिक्षा :-

भगवान को निवेदन करके भोग लगा करके ही भोजन करें, भोजन अमृत बन जाता है भगवान खुद विष पी सकते है मगर भक्तों को प्रसाद स्वरूप अमृत पान ही कराते है..

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