प्रेरणात्मक कहानी -याद
बुद्ध गुजर रहे हैं एक गांव से। नदी के तट पर उन्होंने कुछ बच्चों को रेत के घर बनाते देखा। वे खड़े हो गए। ऐसी उनकी आदत थी। भिक्षु भी चुपचाप, उनके साथ थे, वे खड़े हो गए। बच्चे खेल रहे हैं, रेत के घर बना रहे हैं नदी के तट पर। किसी का पैर किसी के घर में लग जाता है। रेत का घर बिखर जाता है। झगड़ा हो जाता है। मार-पीट भी होती है, गाली-गलौज भी होती है कि तूने मेरा घर मिटा दिया। वह उसके घर पर कूद पड़ता है। वह उसका घर मिटा देता है। फिर अपना घर बनाने में लग जाते हैं। बड़े तल्लीन हैं! उनको पता भी नहीं है कि बुद्ध आकर चुपचाप खड़े हो गए हैं। वे घाट पर चुपचाप खड़े देख रहे हैं। वे बच्चे इतने व्यस्त हैं कि उन्हें कुछ पता भी नहीं है। घर बनाना ऐसी व्यस्तता की बात भी है। और फिर दूसरे दुश्मन हैं, उनसे ज्यादा अच्छा बनाना है, प्रतियोगिता है, जलन है, ईष्र्या है, सब अपने-अपने घर को बड़ा करने में लगे हैं। और जितना बड़ा घर होता है उतनी ही जल्दी गिर जाने का डर भी होता है। उसकी रक्षा भी करनी है, यह सब हो रहा है। और तभी अचानक एक स्त्री ने आकर घाट पर आवाज दी कि सांझ हो गई, मां घरों में याद करती हैं, घर चलो। बच्चों ने चौंक कर देखा, दिन बीत गया, सूरज डूब गया, अंधेरा उतर रहा है। वे उछले-कूदे अपने ही घरों को, सब मटियामेट कर डाला। अब कोई झगड़ा भी नहीं किसी दूसरे से कि तू मेरे घर पर कूद रहा है कि मैं तेरे घर पर। अपने ही घर पर कूदे। अब कोई लड़ा भी नहीं। कोई ईष्र्या भी न उठी, कोई जलन भी न उठी। खेल ही खत्म हो गया! मां की घर से आवाज आ गईः वे सब भागते-दौड़ते अपने घर की तरफ चले गए। दिन भर का सारा झगड़ा व्यवसाय, मकान, अपना-पराया सब भूल गया। घर से आवाज आ गई!
बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से कहा। ऐसे ही एक दिन जब घर से आवाज आ जाती है तब तुम्हारे बाजार, तुम्हारी राजधानियां ऐसी ही पड़ी रह जाती हैं। रेत के घर की तरह! जब तक खेलना हो खेलो, खेल रहे हो तब भी घर भूल थोड़े ही गए हो। अगर भूल ही गए होते घर तो जब द्वार पर आकर कोई आवाज देता है, या घाट पर आवाज देता है कि मां घर पर याद करती है, चलो, तब तुम कैसे पहचानते होः कौन मां, कैसा घर?
अगर मैंने तुम्हें आवाज दी है और कहा है कि सांझ हो गई है, अब घर चलो..और अगर तुमने उस आवाज को सुना, और तुम अगर थोड़ा भी समझ पाए हो, तो उसका अर्थ यही है कि परमात्मा को भूल कर भी भूला नहीं जा सकता। भुलाने की कोशिश कर सकते हो; सफल उसमें कभी कोई भी नहीं हुआ है। परमात्मा को भुलाने की कोशिश असफल ही होती है। वह सफल हो ही नहीं सकती। सफलता संभव ही नहीं है। हां, देर हो सकती है। लेकिन एक न एक दिन सांझ होगी, सूरज डूबेगा, तुम्हें आवाज सुनाई पड़ेगी। आवाज सुनाई पड़ते ही यह सारा संसार ऐसे ही हो जाता है जैसे रेत के घर-गुल्ले। फिर उसमें पैदा हुए वैमनस्य, ईष्र्या, संघर्ष..सब खो जाते हैं। अदालत, मुकदमे, बाजार, *हिसाब-किताब सब व्यर्थ हो जाता है जब घर की याद आ जाती है! और घर को कोई कभी भूलता है? कोई कभी नहीं भूलता।
ठीक ऐसी ही घटना कबीर के जीवन में है। एक बाजार से गुजरते हैं। एक बच्चा अपनी मां के साथ बाजार आया है। मां तो शाक-सब्जी खरीदने में लग गई और बच्चा एक बिल्ली के साथ खेलने में लग गया है। वह बिल्ली के साथ खेलने में इतना तल्लीन हो गया है कि भूल ही गया कि बाजार में हैं; भूल ही गया कि मां का साथ छूट गया है; भूल ही गया कि मां कहां गई।
कबीर बैठे उसे देख रहे हैं। वे भी बाजार आए हैं, अपना जो कुछ कपड़ा वगैरह बुनते हैं, बेचने। वे देख रहे हैं। उन्होंने देख लिया है कि मां भी साथ थी इसके और वे जानते हैं कि थोड़ी देर में उपद्रव होगा, क्योंकि मां तो बाजार में कहीं चली गई है और बच्चा बिल्ली के साथ तल्लीन हो गया है। अचानक बिल्ली न छलांग लगाई। वह एक घर में भाग गई। बच्चे को होश आया। उसने चारों तरफ देखा और जोर से आवाज दी मां को। चीख निकल गई। दो घंटे तक खेलता रहा, तब मां की बिल्कुल याद न थी..क्या तुम कहोगे?
कबीर अपने भक्तों से कहतेः ऐसी ही प्रार्थना है, जब तुम्हें याद आती है और एक चीख निकल जाती है। कितने दिन खेलते रहे संसार में, इससे क्या फर्क पड़ता है? जब चीख निकल जाती है, तो प्रार्थना का जन्म हो जाता है।
तब कबीर ने उस बच्चे का हाथ पकड़ा, उसकी मां को खोजने निकले। तब कोई सदगुरु मिल ही जाता है जब तुम्हारी चीख निकल जाती है। जिस दिन तुम्हारी चीख निकलेगी, तुम सदगुरु को कहीं करीब ही पाओगे..कोई सन्त,कोई फरीद, कोई कबीर, कोई नानक,कोई बुद्ध तुम्हारा हाथ पकड़ लेगा और कहेगा कि हम उसे जानते हैं भलीभांति; —––————- हम उस घर तक पहुंच गए हैं, हम तुझे पहुंचा देते हैं।
प्रार्थना का अर्थ हैः याद, सिमरण कि अरे, मैं कितनी देर तक भूला रहा! प्रार्थना का अर्थ हैः स्मृति, कि अरे, मैंने कितनी देर तक विस्मरण किया! प्रार्थना का अर्थ हैः याद, कि अरे, क्या यह भी संभव है कि इतनी देर तक याद भूल गई थी! तब एक चीख निकल जाती है। तब आंखें आंसुओं से भर जाती हैं; हृदय एक नई अभीप्सा , नये आनंद से! तब सारा संसार पड़ा रह जाता हैः फिर बस उसकी गोद अपनी और खींचने लगती है सब कुछ पीछे छूट जाता है।
ॐ शांति