आज की कहानी
ज्ञानचंद की लाल टोपी
ज्ञानचंद नामक एक जिज्ञासु भक्त था।वह सदैव प्रभुभक्ति में लीन रहता था।रोज सुबह उठकर पूजा- पाठ,ध्यान-भजन करने का उसका नियम था।उसके बाद वह दुकान में काम करने जाता।
दोपहर के भोजन के समय वह दुकान बंद कर देता और फिर दुकान नहीं खोलता था,बाकी के समय में वह साधु-संतों को भोजन करवाता, गरीबों की सेवा करता, साधु-संग एवं दान-पुण्य करता।व्यापार में जो भी मिलता उसी में संतोष रखकर प्रभुप्रीति के लिए जीवन बिताता था।
उसके ऐसे व्यवहार से लोगों को आश्चर्य होता और लोग उसे पागल समझते।
लोग कहतेः “यह तो महामूर्ख है। कमाये हुए सभी पैसों को दान में लुटा देता है। फिर दुकान भी थोड़ी देर के लिए ही खोलता है। सुबह का कमाई करने का समय भी पूजा-पाठ में गँवा देता है। यह पागल ही तो है।”
एक बार गाँव के नगरसेठ ने उसे अपने पास बुलाया। उसने एक लाल टोपी बनायी थी।
नगरसेठ ने वह टोपी ज्ञानचंद को देते हुए कहा”यह टोपी मूर्खों के लिए है।तेरे जैसा महान् मूर्ख मैंने अभी तक नहीं देखा, इसलिए यह टोपी तुझे पहनने के लिए देता हूँ।
इसके बाद यदि कोई तेरे से भी ज्यादा बड़ा मूर्ख दिखे तो तू उसे पहनने के लिए दे देना।
ज्ञानचंद शांति से वह टोपी लेकर घर वापस आ गया।एक दिन वह नगर सेठ खूब बीमार पड़ा। ज्ञानचंद उससे मिलने गया और उसकी तबीयत और हालचाल पूछे।
नगरसेठ ने कहा”भाई ! अब तो जाने की तैयारी कर रहा हूँ।”
ज्ञानचंद ने पूछाः”कहाँ जाने की तैयारी कर रहे हो? वहाँ आपसे पहले किसी व्यक्ति को सब तैयारी करने के लिए भेजा कि नहीं? आपके साथ आपकी स्त्री, पुत्र,धन,गाड़ी,बंगला वगैरह जायेगा कि नहीं?
“भाई ! वहाँ कौन साथ आयेगा? कोई भी साथ नहीं आने वाला है। अकेले ही जाना है।कुटुंब-परिवार, धन-दौलत, महल-गाड़ियाँ सब यहीं पर छोड़कर जाना है। आत्मा-परमात्मा के सिवाय किसी का साथ नहीं रहने वाला है।”
सेठ के इन शब्दों को सुनकर ज्ञानचंद ने खुद को दी गयी वह लाल टोपी नगरसेठ को वापस देते हुए कहाः “यह लाल टोपी अब आप ही इसे पहनो।”
नगरसेठः “क्यों?”
ज्ञानचंदः “मुझसे ज्यादा मूर्ख तो आप हैं।जब आपको पता था कि पूरी संपत्ति, मकान, दुकान दुनियादारी आपके साथ नही जाने वाले तब भी आप जीवन भर इसी लालच में लगे रहे और आवश्यकताओं की पूर्ति होने के बाद भी आप और कमाई करने के स्वार्थ में लगे रहे शारीरिक भौतिक इच्छा पूर्तियों में लगे रहे और सद्कर्म नही किये, जरूरतमंदों की सेवा नही की, ईश्वर की भक्ति नही की भजन नही किया, दान नही किया धर्मिक कार्य नही किये धर्म का प्रचार नही किया परलोक जाने की आपने कुछ भी तैयारी नही की अब आप खुद समझ जाइये की सबसे बड़ा मूर्ख कौन है।
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है। ओम शांति।